जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
लघुकथाएं
लघु-कथा, *गागर में सागर* भर देने वाली विधा है। लघुकथा एक साथ लघु भी है, और कथा भी। यह न लघुता को छोड़ सकती है, न कथा को ही। संकलित लघुकथाएं पढ़िए -हिंदी लघुकथाएँप्रेमचंद की लघु-कथाएं भी पढ़ें।

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पत्ता परिवर्तन  - डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

वह ताश की एक गड्डी हाथ में लिए घर के अंदर चुपचाप बैठा था कि बाहर दरवाज़े पर दस्तक हुई। उसने दरवाज़ा खोला तो देखा कि बाहर कुर्ता-पजामाधारी ताश का एक जाना-पहचाना पत्ता फड़फड़ा रहा था। उस ताश के पत्ते के पीछे बहुत सारे इंसान तख्ते लिए खड़े थे। उन तख्तों पर लिखा था, "यही है आपका इक्का, जो आपको हर खेल जितवाएगा।"
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महीने के आख़री दिन  - राकेश पांडे

महीने के आख़री दिन थे। मेरे लिए तो महीने का हर दिन एक सा होता है। कौन सी मुझे तनख़्वाह मिलती है?  आई'म नोट एनिवन'स सर्वेंट! (I'm not anyone's servant!) राइटर हूँ।खुद लिखता हूँ और उसी की कमाई ख़ाता हू। अफ़सोस सिर्फ़ इतना है, कमाई होती ही नही। मैने सुना है की ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी बूंरंगस (boomerangs) यूज़  करते हैं, शिकार के लिए, जो के फेंकने के बाद वापस आ जाता है। मेरी रचनायें उस बूंरंग को भी शर्मिंदा कर देंगी। इस रफ़्तार से वापस आती हैं।
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शराब - अनिल कटोच

"बाबू! कुछ पैसें दे दो।”
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बड़ा और छोटा | बोधकथा - कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर' | Kanhaiyalal Mishra 'Prabhakar'

विशाल वटवृक्ष ने अपनी छाया में इधर-उधर फैले, कुछ छोटे वृक्षों से अभिमान के साथ कहा--"मैं कितना विराट् हूँ और तुम कितने क्षुद्र! मैं अपनी शीतल छाया में सदा तुम्हें आश्रय देता हूँ।"
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